पूस की रात: मुंशी प्रेमचंद की कहानी
पूस की रात: मुंशी प्रेमचंद की कहानी :-दोस्तों अगर आप मुंशी प्रेमचंद की कहानी पढ़ना चाहते हैं तो आप बिल्कुल सही जगह पर आए हैं । यहाँ आपको मुंशी प्रेमचंद की हर तरह की कहानियाँ मिलने वाली हैं! आज के इस पोस्ट में आपको पूस की रात: मुंशी प्रेमचंद की कहानी के बारे में पूरी जानकारी मिलेगी ! यह कहानी बहुत ही सरल भाषा में लिखी गई है, जो हमें उम्मीद है कि सभी को बहुत पसंद आएगी !
पूस की रात: मुंशी प्रेमचंद की कहानी :- हल्कू अपने घर आकर अपनी पत्नी मुत्री से कहा ,घर में जो रुपये रखे हुए है उसे लेकर आओ,सहना आया है ,उसे दे देता हु ! ताकि उससे छुटाकार मिले ! घर के बरमदे पर झाड़ू लगी रही मुत्री ने पलटकर गुस्से भरे हल्कू की और देखा कर बोली अब तो मात्र चार रूपये ही तो बचे है घर में, जो बचा है वो भी दे देगे सहना को तो माघ -पूस की कड़कती ठण्ड कैसे कटेगी ? अभी सहना से कह दो अभी पैसे नहीं है जब फसल कटेगी तब दे देगे !
हल्कू थोड़ी देर के लिए सोच में पड़ गया और सोचा कि मित्री की भी बात सही है ! पूस की रत में कंबल के बिना ठंडा काटना तो मुश्किल है ! लेकिन हल्कू अड़ियल सहना को जनता था कि बिना पैसा लिए सहना जायेगा नहीं ! हल्कू ने सोचा जब ठण्ड आयेगी तो देखा जायेगा, फिलहाल इस अड़ियल सहना से पिछा तो छुटे ! हल्कू अपनी पत्नी के पास गया और उसके तारीफ करते हुए बोला ! मान लो दे दो न पैसा कम से कम इससे पिछा तो छुटेगा और कंबल के लिए तब तक कोई दूसरा उपय सोच लूँगा !
फिर क्या था यह बात सुनकार हल्कू पर मुत्री गुस्सा हो गयी ! हल्कू को गुस्से से घूरते हुए मुत्री ने कहा, तुम तो चुप ही रहो,जरा बतायो तो हमें भी कौन -सा उपाय है तुम्हारे पास ? लगता है तुमको कोई खेरात में देने वाला है कंबल ! न जाने कितने कर्ज है,जो कभी चुकता ही नहीं ! तुम अब से खेती करना छोड़ दो, येसी खेती से क्या लाभ जो फसल होते ही पूरी कमई कर्ज में चली जाए ! तुमको जो सही लगे करो लेकिन मै तो एक पैसा नहीं देने वाली हु !
मुत्री को गुस्से में देख कर बेचारा हल्कू उदास हो गया और धीमें से बोला , तो क्या मै उसकी गाली -गलोज सुनु ! फिर क्या था इतने खाते ही मुत्री की मन पसीज गया और आवाज में थोड़ी नरमी लाते हुए बोली एसे कैसे वह गाली देगा, क्या उसका राज चलता है ! मुत्री जानती थी कि हल्कू की बात में कड़वी सच्चाई है, इसलिए वह उठी और चुपचाप कमरे से रूपये निकाल कर ले आई और हल्कू को देते हुए बोली मै फिर कह रही हु तुम यह खेती बाड़ी छोड़ दो, मजदूरी करोगे, तो कम से कम किसी की सुननी तो नहीं पड़ेगी और दो वक्त का रोटी तो नसीब होगा !
मुत्री की बात सुनकर हल्कू बिना कुछ बोले रूपये लेकर बाहर चला गया ! हल्कू उन तीन रुपये की अहमियत जनता था, जिसे उसने पाई -पाई जोड़कर कंबल खरीदने के लिए जमा किए थे ! सहना को रूपये थमाते हुए हल्कू के हाथ कपने लगे,जैसे वह अपना सिने से अपना दिल निकाल कर सहना की हथेली पर राझ रहा हो !
पूस की रात: मुंशी प्रेमचंद की कहानी
वक्त अपने गति से बीतते गए और पूस की वो कड़कती सर्दी राते भी आगयी ! असमान में जैसे चाँद -तारे भी ठंड से ठुठुरते लग रहे थे ! हल्कू अपने खेत की किनारे बॉस व पत्तो से बांयी मचान के निचे पुरानी -सी चादार उढे बैठे कपकपाते थे और साथ उसका कुत्ता जब्र भी उसके साथ था,जो सर्दी के कारन बार -बार कू -कू की वाज निकले जा रहे थे ! ठंड इतना ज्यादा थी कि हल्कू और कुत्ता (जबरा) की मनो कि आंखे से नीद कोसो दूर थी !
सर्दी से खुद को बचने के लिए हल्कू ने अपनी गर्दन को घुटने से सटाते हुए अपने कुत्ता (जबरा) की ओर देखते हुए कहा, जब था तुमको कि यहाँ इतनी ज्यादा ठंड है,तो फिर क्यों मेरे पीछे -पीछे दम हिलाते हुए खेत में आ गया ! घर में रहता,तो कम से कम चारदीवारी में इतनी ठंड तो नहीं लगती ! लो अब पड़े रहो इतनी ठंड में यहाँ ? अब कुत्ता (जबार) शांत हो गया था, शयद उसे पट चल गया कि उसके मालिक को कू -कू की आवाज से नीद नहीं आरही है !
इसके बाद हल्कू ठंड से ठुतारते हुए गर्दन को घुटने से सटाए सोचने लगा, सब किस्मत – किस्मत की बात है ! हम यहाँ कड़कती ठंडी में ठुठारते हुए जैसे तैसे रात काट रहे है और पैसे वाले बिना कुछ किये ही टंग पर टंग डालकर मजा लुट रहे है ! हल्कू को ठंड से नीद नहीं आई तो उठ कर बैठा और शारीर को गर्म करने के लिए चिलम भरी और पिने लगा ! हल्कू अपने कुत्ते जब्र से कहने लगा आज यह रात कैसे भी तरह से कट जाये,कल में तुम्हारे लिए यहाँ पुआलबिछा दूंगा,तब ज्यादा ठंड नहीं लगेगा !
अब हल्कू उअही जामीन पर लेट गया और सोचा की कुछ देर के लिए आंख मुद कर सो लेता हु,लेकिन जैसे ही आंख बंद किया,ठंड की चुभन से जैसे पूरा शारीर ठंड चुभने लगे ! फिर क्या था जैसे तैसे लेटे लेटे करवट बदलते हुए हल्कू पूस की रात को कोसते हुए उठकर बैठ गए ! जब हल्कू सब तरह से देख लिए ठंड जाने के नाम ही नहीं ले रही है ! तब जा कर हल्कू उठ कर बैठा और अपने कुत्ता जबरा को उठा कर अपने गोद में कर लेट गया !
ठंड से बचने के लिए कुत्ता जबरा के शारीर से आ रही दुर्घंद को भ हल्कू नजर अंदाज करते हुए आँख मुद कर सोने की कोशिस करने लगा ! जबरे को भी गर्माहट मिल रही थी और उसने भी अपनी आंखे मुद कर सोने की कोशिस कर रहा था ! तभी जबरे के कानो को आहट सुनाई दी जिससे व उठा खरा हुआ ! जबरा अचनाक मचान से बहार निकला और इधर -उधर दौरते हुए जोर -जोर से भोकने लगा ! कुछ देर यहाँ -वहा भोकने के बाद दम हिलाते हुए हल्कू के पास जाकर सत्कार बैठ गया !
येसे ही रात करते हुए रात का एक घंटा और बीत गया और ठंड कम होने का नामे ही नहीं ले रही थी ! फिर क्या थी हल्कू को ठंड से नीद कहा आरह था फिर उठ कर बैठा और अपने दोनों हाथो को टांगो को कसकर पारकर घुटनों पर सिर टिकाये बैठा गया ! अब तो उसको लग रहा था कि कही मेरा खून जम तो नहीं गया है बेबसी भरी अंदाज में आहे भरते रहे और सुबह होने का इन्तजार करने लगा !
हल्कू के खेत के बगल में ही एक आम का बड़ा -सा बगीचा था, जिसे देखकर हल्कू को मन में ख्याल आया पतझड़ शुरू है जरुर इन पेड़ो से सुखी पत्तिया झड़ी होगी, क्यों ना इसके सूखे पत्ते बिछ कर आग जलाकर ताप लू जिससे ठंड से कुछ रहत तो मिलेगा ! मन ही मन डर भी लग रहा था की कही पत्त्तिया बिछने तो चला जयुगा लेकिन कही रात के अंधेरा में मुझ पर कोई जानवार हमला न कर दे और हमें समझ कर कोई भुत न समझ बैठे !
कुछ देर यु ही सोचा कर फिर हल्कू एकदम उठा और कुछ सूखे घास – पूस को गाढ़ की तरह बनकर उसमे आग लगा जलाया जिससे रोशनी हुयी जो रोशनी ले कर बगीचे के तरफ चल पड़े ! अपना मालिक को देख कर जबार (कुत्ता) भी झट से उठा और दुम हिलते हुए हल्कू के पीछें-पीछें जाने लगे ! पेड़ की पास पहुच कर हल्कू ने उन विशाल पेड़ो को देखा जो अँधेरा में कुछ ज्यादा ही डरावना लग रह था ! अपने डर को मन ही मन में दबाते हुए पेड़ की निचे के आसपास सुखी पत्तीयो को बटरौने लगा !
सूखे पत्तो को समटने की आवाज और ठंडी हवा के झोके से आ रही सरसराहट से हल्कू को डर भी लगता लेकिन करता क्या न करता ! ठंड में नागे पाँव पर कनकनी तो मनो तीर की तरह चुभ रहे थे ! इन सब से ध्यान भटकाने के लिए हल्कू ने जबरा से बाते करने लगा और कहने लगा क्या तुमको भी ठंड लग रही बस हो गाय और थोड़ी सी पत्तिय समेत लेता हु फिर दोनों मिलकर खूब आग सेकेंगे ! जितना पत्तिया समेटना था हल्कू समेट कर अपने मचान की और चल पड़ा और पीछे -पीछे जबरा चलने लगा !
मचान के बाहर पहुचकर हल्कू ने पत्तिया में आग लगायी ! देखे ही देखते आग धुधकने लगी जिसके बगल में हल्कू और कुत्ता (जबरा) आग के पास बैठ कर आग तापने लगा ! आग की तयो में हल्कू कभी हाथ सकता तो कभी पाँव तो कभी पीठ पीछे कर के बैठ जाता ! जबरा भी आग के पास पसर कर बैठ गया और उन आगो की लपटों को निहारने लगा ! हल्कू जबरे की और देख कर बोला कहा था ना मैंने अलाव जलते ही ठंड नहीं लगेगी अब सको ले जी भर के आग !
कुछ समय बाद आग की लपते जैसे कही लुप्त हो गयी और पत्तियों का ढेड़ सिमट कर राख में तबदीलहो गया ! अब बस कोई हवा की झोका आता तो बची कुची चिंगारीकही -कही बिछ में लाल लाल अनार की दानो – सी दिखयी देती ! हल्कू रख के बगल में ही चादर ओढ़ कर बैठ गया लेकिन जैसे -जैसे रात ढलती जा रही थी ठंड उसे और जकारने लगी थी ! जब ठंड बर्दास्त से बहाहर हो रहा था तब हल्कू ने कुछ देर बाद उही रख के ढेर को बराबर कर के लेट गया !
हल्कू को नीद आने ही वाली थी कि जबरा अचनाक उठा और खेत की और जोर -जोर से भोकने लगा ! हल्कू की कानो में भी कुछ आवाजे आ रही थी, जैसे जानवारो की बड़ी झुण्ड खेतो में घुस आया हो और जानवार फसल चर रहा हो ! जनवारो की हलचल की आवाजे हल्कू के कानो में पड़ रही थी ! हल्कू अपनी आंखे मूंदे ही सोचने लगा कि जबरे के होते हुए कोई जानवार खेत मे कैसे घुस सकता है ! लगता है मुझे कोई भरम हो रहा है !
हल्कू ने बिना अपनी आंखे खोले जबरा को आवाज लगई, लेकिन जबरा खेतो की और अपना मुंह किये जोर -जोर से भोक्ता रहा,लेकिन हाल्कू के पास नहीं आया ! कुछ देर के बाद चरने की आहाटे खेतो की तरफ से जयादा आने लगी, अब तो हल्कू को पूरा यकीन हो गया कि खेत में जरुर जानवार घुस गया है ! अब क्या था अपने मन को झकझोरते हुए हल्कू आधे मन से उठा कर बैठ गया ! अब तो इस कंप – कांपती ठंडी में उठाकर जाना और फिर जनवारो को भगाना उसे बेहत मुश्किल -सी लग रही थी ! हल्कू वही बैठ कर जबरा को आवाज लगाने लगा जिससे आवाज सुनकर जबरा और जोर -जोर से भोकने लगा !
खेतो में नीलगाय का झुण्ड घुस गया था,जो पूरी तैयार फसल चरने के साथ तहस -नहस किये जा रहे थे ! जबरा अपना गला फाड़ -फाड़ कर भोके जा रहे थे ,जैसे उसे खेत से जानो को कह रहे हो ! इस बार हल्कू ने अपना इरादा पक्का करते हुए खुद को समझया और चादर को गले में लपटते हुए खेत की और अपना कदम बढाने लगा ! अभी तो हल्कू कुछ कदम ही चला था कि अचानक तेज हवा के झोके से उसके कदम लड्खाराने लगा ! कुछ पल के लिए लगा कि जैसे किसी ने ठंडी सुई उसके शारीर में चुभ रहा हो और शारीर में भी अकड़न जैसा महसूस होने लगा !
हल्कू दोड़ते हुए रख की ढेड़ के पास दौड़ आया पास पड़ी लकड़ी की टीली से आग को कुदारने लगा,ताकि उससे कुछ गर्माहट शारीर को लगे ! जबरा खेतो के पास भोकता रहा और हल्कू उस राख के पास सिकुर कर बैठा रहा ! लगता था किसी ने जाकर के रखा हो ! निलगाय की झुण्ड देखते ही देखते पुरे खेत को उधर तहस -नहस कर दिया ! हल्कू उसी रख की ढेड़ पर चादर ताने सो गया और जानवार के जाने के बाद जबरा भी हाफते हुए हल्कू के पास आ कर बैठ गया !
हल्कू को जब सुबह आँख खुली तो दिन निकल आया था और धुप भी निकल आई थी ! जब सामने मुत्री को सामने बैठे गुस्से से घूरते हुए कह रही थी, दिन भर सोये रहोगे क्या ? उठ कर देखो इधर जानवारो ने फसल को क्या हाल कर दिया है ? अब हम क्या करेंगे माथा पिटते कहा ? खेत में रात में तुम्हारा रहना न रहना क्या फायदा, अगर चादर तान कर सोना ही था, तो घर पर पड़े रहते !
मुत्री को बिना चुप होते देख कर हल्कू ने धीरे से बोला क्या तुम खेत होकर आई है ! क्या सच में हमारी पूरी फसल बरबाद हो गया है ! मुत्री ने अपना आंखे ला पिला करते हुए कहा अब तो सब कुछ ख़तम हो गया है ,पूरी तरह से तबाह हो चुके है ! हल्कू जनता था कि मुत्री ऐसे चुप नहीं होगी,फिर हल्कू ने बहाना बनाते हुए कहा तुझे केवाल खेत की पड़ी है, मै यहाँ रात में मरने से बाल -बाल बचा ! रात में मेरे साइन में इतना जोर दर्द हुआ कि में इस जगह से हिल नहीं पाया ! यह बात तुम क्या जानो में जनता हु कि कड़कड़ाती ठंड में रात कैसे कटी है !
हल्कू की इस बात सुनकर मुत्री कुछ नहीं बोली ! फिर दोनों मिलकर खेत के पास गया और देखा बुरी तरह रौदे हुए खेत कर एक टक से निहारने लगे ! मुत्री की चहरे पर मनो ऐसी उदासी छा अपने मन ही मन सोचने लगा की अब गुजरा कैसे होगा ! लेकिन हल्कू के चेहरे पर अलग शांति थी ! मुत्री ने चिंता जताते हुए हलके स्वर में हल्कू से कहा लगता है अब तो मजदूरी करके ही दिन काटने पड़ेगे ! हल्कू ने चेहरे पर हलकी – सी मुस्कान बिखेरते हुए कहा, चलो कम से कम अब इन ठंडी रातो में यहाँ सोना तो नहीं पड़ेगा !
पूस की रात: मुंशी प्रेमचंद की कहानी
यह कहानी से हमें यही सिख मिलता है कि मज़बूरी में इंसान को कोई बार न चाहते हुए भी कठिन फैसले लेने पड़ते है ,जो हमारे भविष्य को प्रभवित कर सकते है ! जीवन के किस मोड पर कब विपति अ जाये कोई नहीं जनता है, इसलिए हमेशा चोकस रहना चाहिये !
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